Thursday, July 3, 2014

दहेज हत्या केस में मुकदमे के लिए आरोपी का खून और विवाह का रिश्ता होना चाहिए: SC

दहेज हत्या केस में मुकदमे के लिए आरोपी का खून और विवाह का रिश्ता होना चाहिए: SC

Thursday, July 3, 2014

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि दहेज हत्या के मामले में किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिये उसे उस समय तक रिश्तेदार नहीं माना जा सकता जब तक पति से उसका खून, विवाह या गोद लिए जाने का रिश्ता नहीं हो।

शीर्ष अदालत ने साथ ही स्पष्ट किया कि उसका तात्पर्य यह नहीं है कि ऐसे व्यक्ति पर आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे आरोप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद और न्यायमूर्ति पी सी घोष की खंडपीठ ने कहा कि उन्हें इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (बी) (दहेज हत्या) में पति के रिश्तेदार शब्द का आशय उन व्यक्तियों से है जिनका खून, विवाह या गोद लिए जाने के रिश्ते से संबंधित है।

न्यायालय ने दहेज हत्या के मामले में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की अपील पर यह व्यवस्था दी। राज्य सरकार ने इस मामले में एक व्यक्ति को आरोपी के रूप में सम्मन जारी करने का निर्णय निरस्त करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।

निचली अदालत ने इस मामले में एक व्यक्ति को आरोपी के रूप में तलब किया था। अदालत का कहना था कि वह मृतक महिला के पति का रिश्तेदार है और इस अपराध में शामिल है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह व्यक्ति मृतक के पति की रिश्तेदार का भाई है और वह कानून में प्रदत्त पति के रिश्तेदार की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है। न्यायालय ने कहा कि धारा 304-बी से यह ध्वनि निकलती है कि जब किसी महिला की विवाह के सात साल के भीतर सामान्य परिस्थितियों से इतर जलने या किसी दूसरी प्रकार की चोटों की वजह से मृत्यु होती है तो यह माना जायेगा कि उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार से दहेज की खातिर हत्या का अपराध किया है यदि यह पता चलता है कि मृत्यु से ठीक पहले महिला के प्रति उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार ने क्रूरता की है या उसे प्रताड़ित किया है।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय का आदेश सही ठहराते हुये राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता में ‘रिश्तेदार’ को परिभाषित नहीं किया गया है।

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